कितने दिल थे जो हो गए पत्थर
कितने पत्थर थे जो सनम ठहरे
शायर लखनवी (मुहम्मद हसन पाशा) लखनऊ के पारंपरिक अंदाज़ की शायरी से अलग हट कर अपनी शायरी के लिए नया अंदाज़ पैदा करने की वजह से जाने जाते हैं। इसी वजह से फ़रमान फ़तहपुरी ने उन्हें लखनऊ का ग़ैर लखनवी शायर घोषित किया है। उनकी पैदाइश लखनऊ में 1917 को हुई। लखनऊ के शे’र-ओ-अदब के परिवेश में दीक्षा और उस्ताद शायरों के सामिप्य ने उनके शे’री रूचि को आभा दी और बहुत छोटी उम्र में अच्छी शायरी करने लगे।
1948 में वह पाकिस्तान चले गये, जीविकोपार्जन के लिए रेडियो पाकिस्तान में नौकरी कर ली। ‘पाकिस्तान हमारा है’ शीर्षक से उनके रेडियो फ़ीचर बहुत लोकप्रिय हुए। शायर लखनवी ने बच्चों के लिए भी नज़्में लिख़ी।