शादाब जावेद का परिचय
मूल नाम : शादाब रज़ा सिद्दीक़ी
जन्म : 08 Aug 1995 | गोण्डा, उत्तर प्रदेश
आज ग़ालिब है मिरे सर पर इश्क़
आज मैं 'मीर' हुआ चाहता हूँ
शादाब रज़ा सिद्दीक़ी इब्न-ए-अहमद जावेद सिद्दीक़ी (जावेद गोंडवी) का तअल्लुक़ हयातगंज, गोंडा, उतर प्रदेश से है, जबकि वह इस वक़्त फ़ैज़ुल्लाहगंज, लखनऊ में सुकूनत-पज़ीर हैं।
उनका तअल्लुक़ एक इल्मी और अदबी ख़ानवादे से है। इब्तिदाई तालीम उन्होंने अपने दादा हुज़ूर, अल्लामा सूफ़ी अब्दुल वहीद साहब मद्द ज़िल्लुहुल आली की बारगाह में हासिल की, जो कि नातगोई में महारत-ए-ताम्मा रखते थे। उनके वालिद-ए-मोहतरम अहमद जावेद सिद्दीक़ी भी आलमी सतह पर ब-हैसियत-ए-उर्दू-नातिया शायर मारूफ़ हैं। इसी इल्मी और अदबी माहौल ने शादाब रज़ा सिद्दीक़ी की तबीअत में अदब और शाइरी की मोहब्बत को परवान चढ़ाया और यही ज़ौक़ आगे चल कर उनकी शाइरी में नुमायाँ नज़र आया।
आला तालीम के हुसूल के लिए उन्हें दादा हुज़ूर की क़ुरबत से महरूम होना पड़ा, मगर इल्मी जुस्तुजू ने उनके सफ़र को जारी रखा। 2014 में उन्होंने जामिया ग़ौसिया अरबी कॉलेज से फ़ारसी ज़बान में ग्रेजुएशन और मौलाना की सनद हासिल की। 2015 से वह उतर प्रदेश सरकार के दफ़्तर-ए-वज़ीर-ए-आला, सेक्रेटरिएट में ख़िदमात अंजाम दे रहे हैं।
शाइरी से उनका तअल्लुक़ इब्तिदा ही से उस्तवार रहा और नातिया शाइरी उनके तख़लीक़ी सफ़र का नुक़्ता-ए-आग़ाज़ बनी। 2011 में उनका पहला नातिया शेर मंज़र-ए-आम पर आया।
यक़ीं है मेरी लहद में हुज़ूर आएँगे
इसीलिए है तमन्ना कि जल्द मर जाऊँ
यही वालिहाना अक़ीदत और इश्क़-ए-रसूल उनकी शाइरी की पहचान बनी। शादाब रज़ा सिद्दीक़ी की शाइरी में फ़िक्री गहराई और जज़्बे की शिद्दत नुमायाँ है, जो उन्हें नौजवान नस्ल की उर्दू शाइरी के एक अहम शाइर के तौर पर मुतआरिफ़ कराती है।