शफ़क़त काज़मी
ग़ज़ल 9
अशआर 2
कभी तो उन को हमारा ख़याल आएगा
हम इस उमीद पे तर्क-ए-वफ़ा नहीं करते
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नई बहार का मुज़्दा बजा सही लेकिन
अभी तो अगली बहारों का ज़ख़्म ताज़ा है
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