इक रोज़ इक नदी के किनारे मिलेंगे हम
इक दूसरे से अपना पता पूछते हुए
शहबाज़ रिज़वी का जन्म 6 फरवरी 1995 को, ज़िला समस्तीपुर, बिहार में हुआ। इब्तिदाई तालीम वतन में ही हासिल की और आला तालीम हासिल करने के लिए दिल्ली का रुख़ किया। दिल्ली आकर मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। दिल्ली की अदबी और फ़न्नी सरज़मीन ने उनकी तबीअत में शेर-ओ-सुख़न का ज़ौक़ पैदा कर दिया और बहुत कम अर्से में उन्होंने शायरी की दुनिया में एक बुलंद मक़ाम हासिल कर लिया। फ़िलहाल शोबा-ए-तालीम से वाबस्ता हैं और दिल्ली शहर के एक कोचिंग सेंटर में फ़िज़िक्स के उस्ताद की हैसियत से मसरूफ़-ए-कार हैं।
शहबाज़ रिज़वी, उर्दू शायरी की एक मुनफ़रिद आवाज़, जिसकी शायरी में ख़ूबसूरत अलफ़ाज़ के साथ नाज़ुक और गहरे एहसासात की झलक मिलती है। उनकी ग़ज़लों में ज़िंदगी के मुख़्तलिफ़ पहलूओं, मोहब्बत, दर्द, और इन्सानियत की गहरी तफ़हीम को बज़ाहिर सादा मगर पुर-असर अंदाज़ में पेश किया जाता है।
शहबाज़ रिज़वी की शायरी में ख़यालात का फैलाव और अलफ़ाज़ का फ़नकाराना इस्तेमाल नुमायाँ है। उनकी ग़ज़लों में हर शेर एक अलग मंज़र पेश करता है जो दिल में गहराई तक असर करता है। उनका कमाल ये है कि वो इंसान के जज़्बात और एहसासात को इतने सलीक़े से बयान करते हैं कि पढ़ने वाले को महसूस होता है जैसे वो ख़ुद उन तज्रबात से गुज़र रहे हैं।
शहबाज़ रिज़वी न सिर्फ़ एक ख़ुश-अख़लाक़ और हस्सास शख़्सियत के हामिल हैं, बल्कि उनकी शायरी में भी यही हस्सासियत झलकती है। उनके अशआर पढ़ कर ऐसा महसूस होता है कि वो हमारे दिल की आवाज़ को अलफ़ाज़ में ढाल रहे हैं। उनकी शायरी में एक ख़ास क़िस्म का रब्त और सादगी है, जो हर पढ़ने वाले के दिल को छू लेती है।
शहबाज़ रिज़वी की शायरी हमें ज़िंदगी के मुख़्तलिफ़ रंगों को नया ज़ाविए से देखने की दावत देती है। वो अपनी ग़ज़लों में सिर्फ़ अलफ़ाज़ का ख़ूबसूरत इज़हार नहीं करते, बल्कि उनके शेर के हर लफ़्ज़ में एक कहानी छिपी होती है जो क़ारी को एक नए तज्रबे से हम-कनार करती है।