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शाहिद सिद्दीक़ी

1911 - 1962 | हैदराबाद, भारत

शाहिद सिद्दीक़ी

ग़ज़ल 22

अशआर 8

अब हयात-ए-इंसाँ का हश्र देखिए क्या हो

मिल गया है क़ातिल को मंसब-ए-मसीहाई

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उरूज-ए-माह को इंसाँ समझ गया लेकिन

हनूज़ अज़्मत-ए-इंसाँ से आगही कम है

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क़रीब दूर से आती है आप की आवाज़

कभी बहुत है ग़म-ए-जुस्तुजू कभी कम है

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साथ देंगी ये दम तोड़ती हुई शमएँ

नए चराग़ जलाओ कि रौशनी कम है

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हम हैं ख़ालिक़-ए-नग़्मा लाओ साज़ हम को दो

गीत छेड़ बैठे हो और गा नहीं सकते

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पुस्तकें 23

वीडियो 4

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

शाहिद सिद्दीक़ी

शाहिद सिद्दीक़ी

शाहिद सिद्दीक़ी

मिरी आरज़ू नए रूप भर के हज़ार फूल खिलाएगी

शाहिद सिद्दीक़ी

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