शहनाज़ नूर के शेर
हम ज़ब्त की हदों से गुज़र भी नहीं गए
ज़िंदा अगर नहीं हैं तो मर भी नहीं गए
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हम-सफ़र ज़ीस्त का सूरज को बनाए रक्खा
अपने साए से ही क़द अपना बढ़ाए रक्खा
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