शहरयार परदाज़ के शेर
जब तक था अपना होश वो रहते थे दूर-दूर
अब आ गए क़रीब तो अपना पता नहीं
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हर मौज-ए-तुंद जानती है ना-ख़ुदाइयाँ
तूफ़ाँ तो मेरे साथ है गर नाख़ुदा नहीं
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क्या ताअत-ए-मुदाम का इनआम है यही
यूँ जी रहे हैं जैसे हमारा ख़ुदा नहीं
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