शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल 106
अशआर 233
नहीं है शिकवा अगर वो नज़र नहीं आता
किसू ने देखी नहीं अपनी जान की सूरत
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मैं उस की चश्म से ऐसा गिरा हूँ
मिरे रोने पे हँसता है मिरा दिल
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रात दिन जारी हैं कुछ पैदा नहीं इन का कनार
मेरे चश्मों का दो-आबा मजम-उल-बहरैन है
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