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शकील शाह

- 2014 | सूरत, भारत

शकील शाह

ग़ज़ल 1

 

अशआर 6

जो देखता हूँ वही बोलने का आदी हूँ

मैं अपने शहर का सब से बड़ा फ़सादी हूँ

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जो देखता हूँ वही बोलने का 'आदी हूँ

मैं अपने शहर का सब से बड़ा फ़सादी हूँ

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मैं इक चराग़ मुझे काम रात भर से है

मुसाफ़िरों की तो पहचान ही सफ़र से है

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मिरे सामने मिरे शहर में कई बे-तुकों को सनद मिली

मिरी ज़ात में जो अदीब है उसे क्या कहूँ उसे क्या कहूँ

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मिरी ज़िंदगी भी 'अजीब है इसे क्या कहूँ इसे क्या कहूँ

कोई दूर है क़रीब है इसे क्या कहूँ इसे क्या कहूँ

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