शमीम जयपुरी के शेर
मिरी ख़ुशी से मिरे दोस्तों को ग़म है 'शमीम'
मुझे भी इस का बहुत ग़म है क्या किया जाए
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बहुत तवील शब-ए-ग़म है क्या किया जाए
उमीद-ए-सुब्ह बहुत कम है क्या किया जाए
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बा-वफ़ाई की अदा पाने लगा हूँ तुझ में
ऐ जफ़ा-दोस्त ये क्या देख रहा हूँ तुझ में
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तर्क-ए-मोहब्बत पर भी होगी उन को नदामत हम से ज़ियादा
किस ने की है कौन करेगा उन से मोहब्बत हम से ज़ियादा
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दुनिया है कि गोशा-ए-जहन्नम
हर वक़्त अज़ाब-ए-इलाही तौबा
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