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शमीम करहानी

1913 - 1975 | करहान, भारत

प्रसिद्ध राष्ट्रवादी एवं तरक़्क़ी-पसंद शाइर

प्रसिद्ध राष्ट्रवादी एवं तरक़्क़ी-पसंद शाइर

शमीम करहानी

ग़ज़ल 48

नज़्म 12

अशआर 7

बुझा है दिल तो समझो कि बुझ गया ग़म भी

कि अब चराग़ के बदले चराग़ की लौ है

याद-ए-माज़ी ग़म-ए-इमरोज़ उमीद-ए-फ़र्दा

कितने साए मिरे हमराह चला करते हैं

चुप हूँ तुम्हारा दर्द-ए-मोहब्बत लिए हुए

सब पूछते हैं तुम ने ज़माने से क्या लिया

लीजिए बुला लिया आप को ख़याल में

अब तो देखिए हमें कोई देखता नहीं

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पीने को इस जहान में कौन सी मय नहीं मगर

इश्क़ जो बाँटता है वो आब-ए-हयात और है

पुस्तकें 13

चित्र शायरी 1

 

वीडियो 4

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
ज़बाँ को हुक्म ही कहाँ कि दास्तान-ए-ग़म कहें

शमीम करहानी

टूटी हुई कश्ती को किनारे भी मिले हैं

शमीम करहानी

पी कर भी तबीअत में तल्ख़ी है गिरानी है

शमीम करहानी

ऑडियो 11

कौन है दर्द-आश्ना संग-दिली का दौर है

ग़म दो आलम का जो मिलता है तो ग़म होता है

जश्न-ए-हयात हो चुका जश्न-ए-ममात और है

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