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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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शमीम रविश

1956

शमीम रविश

ग़ज़ल 10

अशआर 2

इक शख़्स तेरी बज़्म से ख़ामोश उठ गया

शायद ये बात तेरे लिए सोचने की थी

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मुझे हर शाम इक सुनसान जंगल खींच लेता है

और इस के बाद फिर ख़ूनी बलाएँ रक़्स करती हैं

 

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