शारिक़ ईरायानी के शेर
न यही कि ज़ौक़-ए-नज़र मिरा सफ़-ए-गुल-रुख़ाँ से गुज़र गया
मैं तिरी तलाश में बार-हा मह-ओ-कहकशाँ से गुज़र गया
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कहीं दाम-ए-सब्ज़ा-ए-गुल मिला कहीं आरज़ू का चमन खिला
तिरे हुस्न को ये ख़बर भी है मैं कहाँ कहाँ से गुज़र गया
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