सैयद काज़िम अली शौकत बिलग्रामी की पैदाइश 1293 हि. में हैदराबाद में हुई. उनके पिता का नाम सैयद हसन अली बिलग्रामी था. अरबी व फ़ारसी की आरंभिक शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की, उसकेबाद मौलाना सैयद निसार हुसैन अज़ीमाबादी और आग़ा मिर्ज़ा जव्वाद तुहरानी के शागिर्द हुए. मैट्रिक किया और शैक्षिक क्रम टूट गया.
आरंभ से ही शेर व शायरी का शौक़ था इसलिए बहुत कम उमरी में शायरी करने लगे. अमानत लखनवी के शागिर्द फ़साहत लखनवी से त्रुटियाँ ठीक कराई ,उसकेबाद अमीर मीनाई के शागिर्द हुए. हैदराबाद की शेरी महफ़िलों में शरीक होते थे और दिलचस्पी के साथ उनका कलाम सुना जाता था. नौकरी के सिलसिले में एक अर्से तक अलीगढ़ में रहे जहाँ हसरत मोहानी के साथ ख़ूब मुलाक़ातें रहीं. सैयद काज़िम ने शायरी के साथ अनुवाद भी किये. उमर ख़य्याम की रुबाईयों का छन्दोबद्ध अनुवाद उनके देहांत के बाद ‘मयए दोआतशा’ के नाम से प्रकाशित हुआ.