शौक़ संदेलवी के शेर
सितम को हम करम समझे जफ़ा को हम वफ़ा समझे
और इस पर भी न समझे वो तो उस बुत को ख़ुदा समझे
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आह ज़ालिम हो चुकी इक मुंतज़िर की आँख बंद
अब तिरा आना न आना सब बराबर हो गया
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