उपनाम : 'नाज़'
मूल नाम : शेर सिंह जैन
जन्म :दिल्ली
निधन : 19 Mar 1962
चूम कर आया है ये दस्त-ए-हिनाई आप का
क्यूँ न रक्खूँ मैं कलेजे से लगा कर तीर को
शेरसिंह नाज़ जैन देहलवी 1898 में बाड़ा हिन्दू राव के एक धनाड्य और शिक्षित परिवार में पैदा हुए. उनके पिता लाला गिरधारीलाल जैन दिल्ली के रईसों में से थे. नाज़ पश्चिमी साहित्य के अध्ययन के बाद उर्दू की तरफ़ आ गये और शेर कहने लगे.आरम्भ में नवाब सिराजुद्दीन खां साईल देहलवी से अशुद्धियाँ ठीक कराई,उसकेबाद बर्क देहलवी के शागिर्दों में शामिल हो गये.
अपने ख़ूबसूरत तरन्नुम और इश्क़ व मुहब्बत के जज़्बात से गुंधी हुई शाइ’री की वजह से नाज़ मुशायरों में भी बहुत लोकप्रिय हुए. 1947 के हंगामों का असर नाज़ के स्वभाव पर बहुत गहरा पड़ा और वह अदबी व शे’री महफ़िलों से अलग हो गये और एकांतवास अपनालिया. 19 मार्च 1962 को उनका देहांत हुआ. नाज़ का काव्य संग्रह ‘खदंग-ए-नाज़’ के नाम से 1962 में प्रकाशित हुआ.