aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1857 - 1914 | आज़मगढ़, भारत
उर्दू आलोचना के संस्थापकों में शामिल/महान इतिहासकार, स्कालर, राजनैतिक चिंतक और फ़ारसी शायर/अपने ग्रंथ ‘शेर-उल-अजम के लिए प्रसिद्ध
आप जाते तो हैं उस बज़्म में 'शिबली' लेकिन
हाल-ए-दिल देखिए इज़हार न होने पाए
मैं रूह-ए-आलम-ए-इम्काँ में शरह-ए-अज़्मत-ए-यज़्दाँ
अज़ल है मेरी बेदारी अबद ख़्वाब-ए-गिराँ मेरा
अजब क्या है जो नौ-ख़ेज़ों ने सब से पहले जानें दीं
कि ये बच्चे हैं इन को जल्द सो जाने की आदत है
जम्अ कर लीजिए ग़ैरों को मगर ख़ूबी-ए-बज़्म
बस वहीं तक है कि बाज़ार न होने पाए
फ़राज़-ए-दार पे भी मैं ने तेरे गीत गाए हैं
बता ऐ ज़िंदगी तू लेगी कब तक इम्तिहाँ मेरा
Aagaz-e-Islam
Tarjuma Bad-ul-Islam
1922
Aaghaz-e-Islam
Al Farooq
Al Ghazali
इमाम मोहम्मद ग़ज़ाली की सवानेह उम्री
2013
अल ग़ज़ाली
1902
Al Kalam
Part-002
1921
Al Mamoon
1892
Mukammal Dono Hisse
1992
1889
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