शिवेंद्र सिंह
ग़ज़ल 6
अशआर 4
अजीब शख़्स था ख़ुद अपने दुख बनाता था
दिल-ओ-दिमाग़ पे कुछ दिन असर रहा उस का
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फिर उस के बा'द कोई और दुख बना ही नहीं
तबाह-कुन था फ़क़त कुन पुकारना उस का
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समझ में आए तो समझो कभी हमारा दुख
फिर उस के बाद हमारे हुओं का दुख समझो
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हर सम्त मैं हूँ और मेरे होने की है ख़बर
दुनिया विसाल-ए-यार से पहले की बात थी
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