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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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शोएब कियानी

ग़ज़ल 6

नज़्म 11

अशआर 6

मरते रहना मिरा हर रोज़ यूँ थोड़ा थोड़ा

क़त्ल है जिस को मैं साबित नहीं कर पाऊँगा

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उन से ख़ुदा को छीन के बदले में कुछ तो दो

वो जिन के पास कुछ भी ख़ुदा के सिवा नहीं

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कुछ मसअला तो तेरे जहाँ में ज़रूर है

जाँ लग गई हमारी मगर जी लगा नहीं

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मैं अकेला रह गया तो मैं ने कुछ रिश्ते बनाए

मैं ने कुछ रिश्ते बनाए मैं अकेला रह गया

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हम नुमू पाते रहे हैं अपनी हिम्मत से ‘शु’ऐब’

पत्थरों में उगने वाले और कितने सब्ज़ हों

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