सिराज औरंगाबादी
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चित्र शायरी 2
हर तरफ़ यार का तमाशा है उस के दीदार का तमाशा है इश्क़ और अक़्ल में हुई है शर्त जीत और हार का तमाशा है ख़ल्वत-ए-इंतिज़ार में उस की दर-ओ-दीवार का तमाशा है सीना-ए-दाग़ दाग़ में मेरे सहन-ए-गुलज़ार का तमाशा है है शिकार-ए-कमंद-ए-इश्क़ 'सिराज' इस गले हार का तमाशा है
वीडियो 4
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