आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम
उस को भी खो दिया जिसे पाया था ख़्वाब में
सिराज लखनऊ में पैदा हुए और लखनऊ के शे’री व अदबी परम्परा से फायदा उठाया लेकिन उनकी शाइरी लखनऊ के पारंपरिक विषयों और ज़बान व मुहावरे से आगे निकलीं हुई मालूम होती है. सिराज की ग़ज़लों में पारम्परिक विषय भी एक ताज़ा रचनात्मक अनुभव के रूप में उभरे हैं. इसके अलावा सिराज के यहाँ ज़िन्दगी का एक बिल्कुल अलग रचनात्मक बोध नज़र आता है.
सिराज 1894 में पैदा हुए. चर्च मिशन हाईस्कूल में शिक्षा प्राप्त की उसकेबाद कोआपरेटिव सोसाइटीज में मुलाज़िम हो गये और आजीवन इसी विभाग से सम्बद्ध रहे. 1960 को लखनऊ में देहांत हुआ.