सुहैल अख़्तर
ग़ज़ल 12
अशआर 2
पहाड़ जैसे दिनों को तो काट लूँ लेकिन
निकल न पाऊँ मैं इक रात की गिरानी से
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere