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Sufi Ghulam Mustafa Tabassum's Photo'

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

1899 - 1978 | लाहौर, पाकिस्तान

एक प्रसिद्ध शायर, उर्दू के अलावा फ़ारसी और पंजाबी साहित्य में अपने अमूल्य योगदान के लिए प्रख्यात

एक प्रसिद्ध शायर, उर्दू के अलावा फ़ारसी और पंजाबी साहित्य में अपने अमूल्य योगदान के लिए प्रख्यात

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

क्या हुआ जो सितारे चमकते नहीं दाग़ दिल के फ़रोज़ाँ करो दोस्तो

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

वफ़ा की आख़िरी मंज़िल भी आ रही है क़रीब

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

तिरी महफ़िल में सोज़-ए-जावेदानी ले के आया हूँ

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

नज़र को हाल-ए-दिल का तर्जुमाँ कहना ही पड़ता है

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

नाला-ए-सबा तन्हा फूल की हँसी तन्हा

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

सुकून-ए-क़ल्ब ओ शकेब-ए-नज़र की बात करो

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रे हैं

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

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ग़म-नसीबों को किसी ने तो पुकारा होगा

ग़म-नसीबों को किसी ने तो पुकारा होगा फ़रीदा ख़ानम

ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब

ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब फ़रीदा ख़ानम

ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब

ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब फ़रीदा ख़ानम

वो मुझ से हुए हम-कलाम अल्लाह अल्लाह

वो मुझ से हुए हम-कलाम अल्लाह अल्लाह फ़रीदा ख़ानम

क्या हुआ जो सितारे चमकते नहीं दाग़ दिल के फ़रोज़ाँ करो दोस्तो

क्या हुआ जो सितारे चमकते नहीं दाग़ दिल के फ़रोज़ाँ करो दोस्तो फ़रीदा ख़ानम

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जाने किस की थी ख़ता याद नहीं फ़रीदा ख़ानम

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तू ने कुछ भी न कहा हो जैसे ग़ुलाम अली

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ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब

ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब सयान चौधरी

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ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब सयान चौधरी

सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई

सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई नसीम बेगम

शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

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