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सूफ़ी तबस्सुम

1899 - 1978 | लाहौर, पाकिस्तान

सूफ़ी तबस्सुम

ग़ज़ल 51

नज़्म 29

अशआर 18

इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई

दो रोज़ की महफ़िल है इक उम्र की तन्हाई

देखे हैं बहुत हम ने हंगामे मोहब्बत के

आग़ाज़ भी रुस्वाई अंजाम भी रुस्वाई

ऐसा हो ये दर्द बने दर्द-ए-ला-दवा

ऐसा हो कि तुम भी मुदावा कर सको

दिलों का ज़िक्र ही क्या है मिलें मिलें मिलें

नज़र मिलाओ नज़र से नज़र की बात करो

मैं तोहफ़ा ले के आया हूँ तमन्नाओं के फूलों का

लुटाने को बहार-ए-ज़िंदगानी ले के आया हूँ

क़ितआ 17

रुबाई 24

लेख 1

 

पुस्तकें 23

चित्र शायरी 3

 

वीडियो 19

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

सूफ़ी तबस्सुम

वफ़ा की आख़िरी मंज़िल भी आ रही है क़रीब

सूफ़ी तबस्सुम

तिरी महफ़िल में सोज़-ए-जावेदानी ले के आया हूँ

सूफ़ी तबस्सुम

नज़र को हाल-ए-दिल का तर्जुमाँ कहना ही पड़ता है

सूफ़ी तबस्सुम

नाला-ए-सबा तन्हा फूल की हँसी तन्हा

सूफ़ी तबस्सुम

ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब

सूफ़ी तबस्सुम

सुकून-ए-क़ल्ब ओ शकेब-ए-नज़र की बात करो

सूफ़ी तबस्सुम

हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रे हैं

सूफ़ी तबस्सुम

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Recitation

aah ko chahiye ek umr asar hote tak SHAMSUR RAHMAN FARUQI

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