सुलतान रशक के शेर
सुख़नवरी से है मक़्सूद मअ'रिफ़त फ़न की
मैं बे-हुनर हूँ तलाश-ए-हुनर में रहता हूँ
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मैं अब्र-ओ-बाद से तूफ़ाँ से सब से डरता हूँ
ग़रीब-ए-शहर हूँ काग़ज़ के घर में रहता हूँ
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