सुलतान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल 2
अशआर 1
माना कि हम वतन से अज़ीज़ों से दूर हैं
तहज़ीब से जुदा हैं न उर्दू ज़बाँ से दूर
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere