सुमन शाह
ग़ज़ल 6
नज़्म 1
अशआर 1
मिरी नींदों का जो बैरी उसी कम-लुत्फ़ की ख़ातिर
ये तरसा भी ये जागा भी मुझे इस दिल पे हैरत है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere