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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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सय्यद अमीन अशरफ़

1930 - 2013 | अलीगढ़, भारत

अग्रणी आधुनिक शायरों में विख्यात।

अग्रणी आधुनिक शायरों में विख्यात।

सय्यद अमीन अशरफ़

ग़ज़ल 57

अशआर 15

इक ख़ला है जो पुर नहीं होता

जब कोई दरमियाँ से उठता है

कहीं पे दस्त-ए-निगारीं कहीं लब-ए-ल'अलीं

वो सोते सोते मिरी नींद का उचट जाना

कहीं भी ताइर-ए-आवारा हो मगर तय है

जिधर कमाँ है उधर जाएगा कभी कभी

है ता-हद्द-ए-इम्काँ कोई बस्ती बयाबाँ

आँखों में कोई ख़्वाब दिखाई नहीं देता

हवा का तब्सिरा ये साकिनान-ए-शहर पे था

अजीब लोग हैं पानी पे घर बनाते हैं

पुस्तकें 11

ऑडियो 4

किसी ख़याल की रौ में था मुस्कुराते हुए

पेच-दर-पेच सवालात में उलझे हुए हैं

मुनव्वर और मुबहम इस्तिआरे देख लेता हूँ

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