सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल 57
अशआर 15
है ता-हद्द-ए-इम्काँ कोई बस्ती न बयाबाँ
आँखों में कोई ख़्वाब दिखाई नहीं देता
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
इक चाँद है आवारा-ओ-बेताब ओ फ़लक-ताब
इक चाँद है आसूदगी-ए-हिज्र का मारा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
लज़्ज़त-ए-दीद ख़ुदा जाने कहाँ ले जाए
आँख होती है तो होता नहीं क़ाबू दिल पर
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
किसी से इश्क़ हो जाने को अफ़्साना नहीं कहते
कि अफ़्साने मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार होते हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
इक ख़ला है जो पुर नहीं होता
जब कोई दरमियाँ से उठता है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए