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सय्यद अमीन अशरफ़

1930 - 2013 | अलीगढ़, भारत

अग्रणी आधुनिक शायरों में विख्यात।

अग्रणी आधुनिक शायरों में विख्यात।

सय्यद अमीन अशरफ़

ग़ज़ल 57

अशआर 15

है ता-हद्द-ए-इम्काँ कोई बस्ती बयाबाँ

आँखों में कोई ख़्वाब दिखाई नहीं देता

इक चाँद है आवारा-ओ-बेताब फ़लक-ताब

इक चाँद है आसूदगी-ए-हिज्र का मारा

लज़्ज़त-ए-दीद ख़ुदा जाने कहाँ ले जाए

आँख होती है तो होता नहीं क़ाबू दिल पर

किसी से इश्क़ हो जाने को अफ़्साना नहीं कहते

कि अफ़्साने मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार होते हैं

हल्क़ा-ए-शाम-ओ-सहर से नहीं जाने वाला

दर्द इस दीदा-ए-तर से नहीं जाने वाला

पुस्तकें 9

 

ऑडियो 4

किसी ख़याल की रौ में था मुस्कुराते हुए

पेच-दर-पेच सवालात में उलझे हुए हैं

मुनव्वर और मुबहम इस्तिआरे देख लेता हूँ

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