सय्यद एहतिशाम हुसैन
लेख 29
उद्धरण 13
अशआर 8
तेरा ही हो के जो रह जाऊँ तो फिर क्या होगा
ऐ जुनूँ और हैं दुनिया में बहुत काम मुझे
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दिल ने चुपके से कहा कोशिश-ए-नाकाम के बाद
ज़हर ही दर्द-ए-मोहब्बत की दवा हो जैसे
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न जाने हार है या जीत क्या है
ग़मों पर मुस्कुराना आ गया है
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मंज़िल न मिली तो ग़म नहीं है
अपने को तो खो के पा गया हूँ
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यूँ गुज़रता है तिरी याद की वादी में ख़याल
ख़ारज़ारों में कोई बरहना-पा हो जैसे
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