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सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

1816 - 1865 | रामपुर, भारत

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

ग़ज़ल 25

अशआर 44

ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है

बिछाया है क़मर ने चाँदनी का फ़र्श महफ़िल में

है ईद मय-कदे को चलो देखता है कौन

शहद शकर पे टूट पड़े रोज़ा-दार आज

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वही माबूद है 'नाज़िम' जो है महबूब अपना

काम कुछ हम को मस्जिद से बुत-ख़ाने से

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ईद के दिन जाइए क्यूँ ईद-गाह

जब कि दर-ए-मय-कदा वा हो गया

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सँभाल वाइ'ज़ ज़बान अपनी ख़ुदा से डरा इक ज़रा हया कर

बुतों की ग़ीबत ख़ुदा के घर में ख़ुदा ख़ुदा कर ख़ुदा ख़ुदा कर

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रुबाई 24

पुस्तकें 6

 

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