सय्यदा फ़रहत के शेर
तिरे भूल जाने की आदत के सदक़े
तुझे भूल जाने को जी चाहता है
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बात क्यूँ खोएँ इल्तिजा कर के
तुम से उम्मीद-ए-इल्तिफ़ात नहीं
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