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ताबाँ अब्दुल हई

1715 - 1749 | दिल्ली, भारत

शायरी के अलावा अपनी सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध। कम उम्र में देहांत हुआ

शायरी के अलावा अपनी सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध। कम उम्र में देहांत हुआ

ताबाँ अब्दुल हई के ऑडियो

ग़ज़ल

ग़म में रोता हूँ तिरे सुब्ह कहीं शाम कहीं

फ़सीह अकमल

ग़ैर के हाथ में उस शोख़ का दामान है आज

फ़सीह अकमल

तू भली बात से ही मेरी ख़फ़ा होता है

फ़सीह अकमल

देख उस को ख़्वाब में जब आँख खुल जाती है सुब्ह

फ़सीह अकमल

दाग़-ए-दिल अपना जब दिखाता हूँ

फ़सीह अकमल

दिलबर से दर्द-ए-दिल न कहूँ हाए कब तलक

फ़सीह अकमल

नहीं तुम मानते मेरा कहा जी

फ़सीह अकमल

मुझे ऐश ओ इशरत की क़ुदरत नहीं है

फ़सीह अकमल

यार रूठा है मिरा उस को मनाऊँ किस तरह

फ़सीह अकमल

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