ताबिश मेहदी
ग़ज़ल 12
अशआर 10
अजनबी रास्तों पर भटकते रहे
आरज़ूओं का इक क़ाफ़िला और मैं
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अगर फूलों की ख़्वाहिश है तो सुन लो
किसी की राह में काँटे न रखना
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पड़ोसी के मकाँ में छत नहीं है
मकाँ अपने बहुत ऊँचे न रखना
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ये माना वो शजर सूखा बहुत है
मगर उस में अभी साया बहुत है
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