ताहिर अदीम
ग़ज़ल 27
अशआर 7
फ़क़त तुम ही नहीं नाराज़ मुझ से जान-ए-जानाँ
मिरे अंदर का इंसाँ तक ख़फ़ा है इंतिहा है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मुझे वो छोड़ कर जब से गया है इंतिहा है
रग-ओ-पय में फ़ज़ा-ए-कर्बला है इंतिहा है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
रंग क्या अजब दिया मेरी बेवफ़ाई को
उस ने यूँ किया कि मेरे ख़त जलाए ऊद में
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
उसे भी पर्दा-ए-तहज़ीब को गिराना है
मुझे भी पैकर-ए-नायाब से निकलना है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
नहीं है रहना उसे भी बहार में 'ताहिर'
मुझे भी मौसम-ए-शादाब से निकलना है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए