ताज सईद के शेर
मैं ने ज़ुल्मत के फ़ुसूँ से भागना चाहा मगर
मेरे पीछे भागती फिरती मिरी रुस्वाई थी
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पत्ता पत्ता शाख़ से टूटे दरवाज़ों पे वहशत सी
यारो प्रेम कथा में किस ने दर्द की तान मिलाई है
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मसअला ये भी तो है इस अहद का ऐ जान-ए-जाँ
क्यूँ निछावर जाँ करें किस के लिए ज़िंदा रहें
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किस ने आ कर हम को दी आवाज़ पिछली रात में
कौन हम को छेड़ने आया है इन लम्हात में
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