ताज सईद के दोहे
हर इक का दिल मोह लेती थी उस की इक मुस्कान
ये मुस्कान थी साथ उस के चेहरे की पहचान
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मुझ से कन्नी काट न गोरी मैं हूँ तेरी छाया
मैं इक दाता जोगी बन कर तेरी गली में आया
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