ताजदार आदिल
ग़ज़ल 31
अशआर 8
वो इस कमाल से खेला था इश्क़ की बाज़ी
मैं अपनी फ़तह समझता था मात होने तक
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तुम्हारी याद बढ़ी और दिल हुआ रौशन
ये एक शम्अ अँधेरे ने ख़ुद जला ली है
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हर मुसाफ़िर के साथ आता है
इक नया रास्ता हमेशा से
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ज़ख़्म कब का था दर्द उठा है अब
उस के जाने का दुख हुआ है अब
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मेरी आँखों में ख़्वाब हैं जिस के
उस की आँखों में रत-जगा है अब
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