तारिक़ इस्लाम कुकरावी
ग़ज़ल 8
अशआर 2
बात सच है सच कहूँगा हर घड़ी हर मोड़ पर
लाख आए ज़िंदगी में चाहे दुश्वारी मुझे
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उस ने बिताई साथ में हैं छुट्टियाँ अभी
दो-चार दिन ही बीते हैं हफ़्ता नहीं हुआ
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