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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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तारिक़ मतीन

ग़ज़ल 9

अशआर 2

मौत बर-हक़ है तो फिर मौत से डरना कैसा

एक हिजरत ही तो है नक़्ल-ए-मकानी ही तो है

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कुछ और हो गई दुश्वार नेक-ओ-बद की तमीज़

कि अब तो ख़ैर के पर्दे में शर निकलता है

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