तौक़ीर तक़ी
ग़ज़ल 11
अशआर 16
फेंक दे ख़ुश्क फूल यादों के
ज़िद न कर तू भी बे-वफ़ा हो जा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
जैसे वीरान हवेली में हों ख़ामोश चराग़
अब गुज़रती हैं तिरे शहर में शामें ऐसी
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
अब ज़माने में मोहब्बत है तमाशे की तरह
इस तमाशे से बहलता नहीं तू भी मैं भी
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
सब्ज़ पेड़ों को पता तक नहीं चलता शायद
ज़र्द पत्ते भरे मंज़र से निकल जाते हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
कल जहाँ दीवार ही दीवार थी
अब वहाँ दर है जबीं है इश्क़ है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए