aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1687 - 1766 | दिल्ली, भारत
नाज़ बे-जा ओ लुत्फ़ बे-मौक़ा'
दिलबरों की अदा है क्या क्या कुछ
हमें वाइ'ज़ डराता क्यूँ है दोज़ख़ के अज़ाबों से
मआसी गो हमारे बेश हों कुछ मग़फ़िरत कम है
कहते हैं अंदलीब-ए-गिरफ़्तार मुझ को देख
उम्मीद जीवने की नहीं इस बहार में
वही इक आसमाँ है जिस को हम तुम तार कहते हैं
कभी तस्बीह कहते हैं कभी ज़ुन्नार कहते हैं
नहीं मालूम क्या हिकमत है शैख़ इस आफ़रीनश की
हमें ऐसा ख़राबाती किया तुझ को मुनाजाती
Bahar۔e۔Ajam
Volume-002
Bahar-e-Ajam
1866
Volume-001
1879
Kamil
1916
Bahar-e-Bostan
Sharh-e-Bostan
1891
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