तिश्ना बरेलवी के शेर
क़रीब आ न सका मैं तिरे मगर ख़ुश हूँ
कि मेरा ज़िक्र तिरी दास्ताँ से दूर नहीं
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बस यही इक काम बाक़ी था जो करना है मुझे
मैं मोहब्बत बो रहा हूँ नफ़रतों के दरमियाँ
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