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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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अज्ञात

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अज्ञात

अज्ञात

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अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

"Anam" a Nazm By Faraz Ahmad sung By: Sunil Chaudhry

अज्ञात

Aa Kar Ke Meri Kabr Par - Bahadur Shah Zafar

अज्ञात

Aaj phir dil ne kaha aao bhuladen yaaden

अज्ञात

Ab ke uski aankhon mein

अज्ञात

Ab rahiye baith ek jangal mein

अज्ञात

Aisa nahi ke tere baad ahle karam nahi mile

अज्ञात

Aitbar Sajid 16: Tarjuman Nahi Rahe

अज्ञात

Allama Iqbal Urdu & Farsi Nazam

अज्ञात

Amazing Urdu Naat by Ghulam Muhammad Qasir

अज्ञात

An Evening on Asrar ul Haq Majaz Birth Anniversary by Muzzafar Ali's Rumi Foundation(Lucknow Chapter)

अज्ञात

Apne hone ka hum ehsaas jagaane aae

अज्ञात

Apne markaz se agar door nikal jao ge

अज्ञात

Baat Kar

अज्ञात

Bedam Shah Warsi's 'Hamari Jaan Ho...' sung by Azalea Ray

अज्ञात

Bhari mehfil mein tanhaaii ka aalam dhoond leta hoon

अज्ञात

Chalo chodo mohabbat jhoot hai

अज्ञात

Dekh Lo Aaj Hum Ko Jee Bhar ke - Hindi Film Bazaar

अज्ञात

Dil Ko Jahan Bhar Ke Muhabbat Mein Gham Mile

अज्ञात

Diwali Nazm

अज्ञात

dushmanon ne to dushmani ki hai

अज्ञात

Ibtedaa-e-Zindagi

अज्ञात

Ilahi koi hawa ka

अज्ञात

In Solidarity with Gaza - Ahmed Faraz Nazm

अज्ञात

Iraada ho atal to maujzaa aisa bhi hota hai

अज्ञात

Is tapish ka hai mazaa dil hi ko haasil

अज्ञात

Jab meri yaad sataae mujhe khat likhna

अज्ञात

Jab un se mile

अज्ञात

Jism chhooti hai jab aa aa ke pawan baarish mein

अज्ञात

Jo khayaal the na qayaas the

अज्ञात

Kaee saal guzre kaee saal beete

अज्ञात

Kamla Devi singing Fani Badayuni

अज्ञात

Koi kaisa humsafar hai

अज्ञात

Main aisa khoobsoorat rang hoon

अज्ञात

Main jahaan rahoon

अज्ञात

Maine dekha tha un dino mein use

अज्ञात

Mansab to hamein bhi mil sakte the

अज्ञात

Matlabi hain log yahan par, matlabi zamaana

अज्ञात

Mere baad kidhar jaaegi tanhaee

अज्ञात

Meri raaton ki raahat din ke itmenaan

अज्ञात

Mile kisi se nazar to samjho ghazal hui

अज्ञात

More Jobna Ka Ubhar Papi Jobna Ka Dekho Zohrabai Ambalewali

अज्ञात

Mughe apne zabt pe naz tha

अज्ञात

Mujhe ab laut jane de

अज्ञात

Mujhe maut di ke hayaat di

अज्ञात

Na ghubaar mein na gulaab mein mujhe dekhna

अज्ञात

Na samaaton mein tapish ghuleNa samaaton mein tapish ghule

अज्ञात

Phir usi dasht se aa mil le milaale

अज्ञात

Rang mausam ka haraa tha pehle

अज्ञात

Saaye-e-Ahmed-e-Mukhtar Mubarak Bashad - Kalam-e-Bedam Shah Warsi by Ahsan & Adil Hussain Khan

अज्ञात

shauq-e-beintiha na de jana

अज्ञात

Shikast e zarf ko pindaar e rindana nahin kehte

अज्ञात

Shikwa bhi jafa ka kaise karein

अज्ञात

Shouq Se Nakami Ki Badaulat

अज्ञात

Tera beemaar na sambhlaa

अज्ञात

Tere pyar ki tamanna

अज्ञात

Teri aankhen

अज्ञात

Tujhse milne ka nahin koi imkaan jaana

अज्ञात

Tum naghma e mah o anjum ho

अज्ञात

Tumhain Dekh K Yaad Aata Hai Mujhay..... Kahin Pehlay Bhe Tum Sy Mila Hu Mein

अज्ञात

Vocal Title: Kis Ne Zarron Ko Uthaya کس نے ذروں کو اٹھایا Lyrics: Pandit Harichand Akhtar

अज्ञात

Ye to uska hi karishma hai

अज्ञात

Yeh nigah e sharm jhuki jhuki

अज्ञात

Yun hi si ek baat thi

अज्ञात

अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है

अज्ञात

अज़ल के मुसव्विर से

बना बना के तू करता है क्यों फ़ना हम को अज्ञात

अज़ल के मुसव्विर से

बना बना के तू करता है क्यों फ़ना हम को अज्ञात

अज़ल के मुसव्विर से

बना बना के तू करता है क्यों फ़ना हम को अज्ञात

अपने मरकज़ से कट गया हूँ मैं

अज्ञात

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए

अज्ञात

आख़िर ऐसा क्यों है पापा

आख़िर ऐसा क्यों है पापा अज्ञात

आँखों का है क़ुसूर अगर वो अयाँ नहीं

अज्ञात

आदमी पहले तो लाज़िम है कि इंसान बने

अज्ञात

आप की ओर इक नज़र देखा

अज्ञात

आप की ओर इक नज़र देखा

अज्ञात

''आप की याद आती रही रात भर''

अज्ञात

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

अज्ञात

ऐ शरीफ़ इंसानो

ख़ून अपना हो या पराया हो अज्ञात

और क्या चाहिए जीने के लिए

कौन सी शय से है दुनिया तिरी महरूम बता अज्ञात

और क्या चाहिए जीने के लिए

कौन सी शय से है दुनिया तिरी महरूम बता अज्ञात

क़दम-क़दम पे तू ऐ राह-रौ क़याम न कर

अज्ञात

कभी कहा न किसी से तिरे फ़साने को

अज्ञात

कभी लगता है ज़र्रे के बराबर है बिसात अपनी

अज्ञात

क्यों कहीं बैठ के दम लेते नहीं एक घड़ी

किस तरफ़ दौड़े चले जाते हो तुम यूँ सरपट अज्ञात

करो दाग़-ए-दिल की सदा पासबानी

अज्ञात

किया क्या ऐ 'सदा' तू ने बता आ कर ज़माने में

किया क्या ऐ सदा तू ने बता आ कर ज़माने में अज्ञात

किस से इज़हार-ए-मुद्दआ कीजे

अज्ञात

किसी से अहद-ओ-पैमाँ कर न रहियो

अज्ञात

किसी सलीम से जब है कोई ख़ता होती

अज्ञात

गुमाँ का मुमकिन- जो तू है मैं हूँ

करीम सूरज अज्ञात

छुपता नहीं नक़ाब में जल्वा शबाब का

अज्ञात

जवाब-ए-शिकवा

दिल से जो बात निकलती है असर रखती है अज्ञात

जुस्तुजू

तुम्हारी ख़ामोश सुलगती साँसों में अज्ञात

जो तेज़ दौड़ते थे बहुत जल्द थक गए

अज्ञात

त'आरुफ़

नहीं मुमकिन मिटाना मुझ को मिस्ल-ए-नक़श-ए-पा यारो अज्ञात

तुम को देखा तो ये ख़याल आया

अज्ञात

तमन्ना के तार

तमन्ना के ज़ोलीदा तार अज्ञात

दु'आ

दौलत जहाँ की मुझ को तू मेरे ख़ुदा न दे अज्ञात

दुनिया में रह के दुनिया में शामिल नहीं हूँ मैं

अज्ञात

दसहरा

हर साल जलाते हो रावन अज्ञात

दिल के कहने पर चल निकला

अज्ञात

दिल के कहने पर चल निकला

अज्ञात

दिल के कहने पर चल निकला

अज्ञात

दिल में अब यूँ तिरे भूले हुए ग़म आते हैं

अज्ञात

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

अज्ञात

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

अज्ञात

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो

अज्ञात

न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है

अज्ञात

नज़र ने कर दिया ग़ाएब दिखाया दिल ने जो जल्वा

अज्ञात

नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम

अज्ञात

निगाह ख़ुद पे टिकी थी तो और क्या दिखता

अज्ञात

नींद आई ही नहीं हम को न पूछो कब से

अज्ञात

पत्ता पत्ता क्यों है दिल अफ़गार इस गुलज़ार का

अज्ञात

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है

अज्ञात

फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है

अज्ञात

फिर भी अपना देश है चंगा

आधा भूका आधा नंगा अज्ञात

बहुत दिल को कुशादा कर लिया क्या

अज्ञात

बात बस से निकल चली है

अज्ञात

मंज़र-ए-रुख़्सत-ए-दिलदार भुलाया न गया

अज्ञात

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात

मरहूम की याद में

अज्ञात

मिरे हमदम मिरे दोस्त!

गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्त अज्ञात

मिरे हमदम मिरे दोस्त!

गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्त अज्ञात

मिरी तौबा जो टूटी है शरारत सब फ़ज़ा की है

अज्ञात

मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए

अज्ञात

मिली दिल की अपने ख़बर सनम तुझे दिल में जब से बसा लिया

अज्ञात

मोहब्बत करने वाले कम न होंगे

अज्ञात

ये कौन आ गई दिल-रुबा महकी महकी

अज्ञात

ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ

अज्ञात

ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ

अज्ञात

ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ

अज्ञात

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

अज्ञात

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

अज्ञात

लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला

अज्ञात

वजूद पर इंहिसार मैं ने नहीं किया था

अज्ञात

वो नबियों में रहमत लक़ब पाने वाला

अज्ञात

वो भूल गया मुझ से बरसों की शनासाई

अज्ञात

वो मज़ा रखते हैं कुछ ताज़ा फ़साने अपने

अज्ञात

सब से प्यारा है प्यार का रिश्ता

अज्ञात

सरमाया-दारी

कलेजा फुंक रहा है और ज़बाँ कहने से आरी है अज्ञात

सादगी तो हमारी ज़रा देखिए ए'तिबार आप के वा'दे पर कर लिया

अज्ञात

है बिखरने को ये महफ़िल-ए-रंग-ओ-बू तुम कहाँ जाओगे हम कहाँ जाएँगे

अज्ञात

हक़ की है गर तलाश तो ये मान कर चलो

अज्ञात

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

अज्ञात

हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए

अज्ञात

हल्क़े में रसूलों के वो माह-ए-मदनी है

अज्ञात

हँसते-हँसते न सही रो के ही कट जाने दो

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

1919 की एक बात

अज्ञात

Based on Sadat Hassan Manto's short story "Thanda Gosht"

अज्ञात

Buu

अज्ञात

jab teri samundar aankhon mein

ये धूप किनारा शाम ढले अज्ञात

KHatm hui barish-e-sang

ना-गहाँ आज मिरे तार-ए-नज़र से कट कर अज्ञात

Khol do

अज्ञात

Khol Do (Photo Story)

अज्ञात

KHuda wo waqt na lae

ख़ुदा वो वक़्त न लाए कि सोगवार हो तू अज्ञात

kya karen

मिरी तिरी निगाह में अज्ञात

lauh-o-qalam

हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे अज्ञात

main tere sapne dekhun

अज्ञात

mere dard ko jo zaban mile

मिरा दर्द नग़मा-ए-बे-सदा अज्ञात

mere hamdam mere dost

गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्त अज्ञात

mere hi lahu par guzar auqat karo ho

अज्ञात

Piran

अज्ञात

shishon ka masiha koi nahin

मोती हो कि शीशा जाम कि दुर अज्ञात

tin aawazen - Part 2

ज़ालिम अज्ञात

tum apni karni kar guzro

अब क्यूँ उस दिन का ज़िक्र करो अज्ञात

Zihaal-e-Miskeen - Sannata Soundtrack

अज्ञात

अक़्ल गो आस्ताँ से दूर नहीं

अज्ञात

अक़्ल गो आस्ताँ से दूर नहीं

अज्ञात

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा

अज्ञात

अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा

अज्ञात

अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए

अज्ञात

अचानक दिलरुबा मौसम का दिल-आज़ार हो जाना

अज्ञात

अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता

अज्ञात

अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता

अज्ञात

अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता

अज्ञात

अंधा कबाड़ी

शहर के गोशों में हैं बिखरे हुए अज्ञात

अनार कली

अज्ञात

अपने को तलाश कर रहा हूँ

अज्ञात

अपने सब यार काम कर रहे हैं

अज्ञात

अपने हाथों की लकीरों में सजा ले मुझ को

अज्ञात

अपने हाथों की लकीरों में सजा ले मुझ को

अज्ञात

अपने हाथों की लकीरों में सजा ले मुझ को

अज्ञात

अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाए

अज्ञात

अपनी तन्हाई मिरे नाम पे आबाद करे

अज्ञात

अपनी धुन में रहता हूँ

अज्ञात

अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ

अज्ञात

अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो

अज्ञात

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

अज्ञात

अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे

अज्ञात

अब तो ये भी नहीं रहा एहसास

अज्ञात

अब्जी डूडू

अज्ञात

अभी इक शोर सा उठा है कहीं

अज्ञात

अभी तो मैं जवान हूँ

हवा भी ख़ुश-गवार है अज्ञात

अभी हमारी मोहब्बत किसी को क्या मालूम

अज्ञात

अल्लाह दत्ता

अज्ञात

अश्क-ए-ग़म आँख से बाहर भी नहीं आने का

अज्ञात

अश्क-ए-रवाँ की नहर है और हम हैं दोस्तो

अज्ञात

असर उस को ज़रा नहीं होता

अज्ञात

असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद

अज्ञात

असली जिन

अज्ञात

आ के पत्थर तो मिरे सहन में दो चार गिरे

अज्ञात

आ जाएँ हम नज़र जो कोई दम बहुत है याँ

अज्ञात

आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने

अज्ञात

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए

अज्ञात

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए

अज्ञात

आँखें

अज्ञात

आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा

अज्ञात

आख़िरी सल्यूट

अज्ञात

आँखों पर चर्बी

अज्ञात

आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ

अज्ञात

आँखों में बस के दिल में समा कर चले गए

अज्ञात

आँखों से हया टपके है अंदाज़ तो देखो

अज्ञात

आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता

अज्ञात

आज की शब तो किसी तौर गुज़र जाएगी

आज की शब तो किसी तौर गुज़र जाएगी अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज जाने की ज़िद न करो

अज्ञात

आज तो बे-सबब उदास है जी

अज्ञात

आप की याद आती रही रात भर

अज्ञात

आप की याद आती रही रात भर

अज्ञात

आप की याद आती रही रात भर

अज्ञात

आप जिन के क़रीब होते हैं

अज्ञात

आप जिन के क़रीब होते हैं

अज्ञात

आप जिन के क़रीब होते हैं

अज्ञात

आप जिन के क़रीब होते हैं

अज्ञात

आम

अज्ञात

आरज़ू है वफ़ा करे कोई

अज्ञात

आर्टिस्ट लोग

अज्ञात

आलम ही और था जो शनासाइयों में था

अज्ञात

आवारा

शहर की रात और मैं नाशाद ओ नाकारा फिरूँ अज्ञात

आवारा

शहर की रात और मैं नाशाद ओ नाकारा फिरूँ अज्ञात

आवारा

शहर की रात और मैं नाशाद ओ नाकारा फिरूँ अज्ञात

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

अज्ञात

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

अज्ञात

आह जो दिल से निकाली जाएगी

अज्ञात

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो

अज्ञात

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो

अज्ञात

इक दानिश-ए-नूरानी इक दानिश-ए-बुरहानी

अज्ञात

इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए

अज्ञात

इक शहंशाह ने बनवा के....

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल अज्ञात

इक शहंशाह ने बनवा के....

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल अज्ञात

इक शहंशाह ने बनवा के....

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल अज्ञात

इक शहंशाह ने बनवा के....

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल अज्ञात

इक शहंशाह ने बनवा के....

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल अज्ञात

इक शहंशाह ने बनवा के....

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल अज्ञात

इक शहंशाह ने बनवा के....

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल अज्ञात

इक शहंशाह ने बनवा के....

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल अज्ञात

इतना मालूम है!

अपने बिस्तर पे बहुत देर से मैं नीम-दराज़ अज्ञात

इंतिसाब

आज के नाम अज्ञात

इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई

अज्ञात

इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही

अज्ञात

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ

अज्ञात

इंसान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी

अज्ञात

इसी में ख़ुश हूँ मिरा दुख कोई तो सहता है

अज्ञात

उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या

अज्ञात

उर्दू

हमारी प्यारी ज़बान उर्दू अज्ञात

उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है

अज्ञात

एक ख़त

अज्ञात

एक रह-गुज़र पर

वो जिस की दीद में लाखों मसर्रतें पिन्हाँ अज्ञात

एक लड़का

एक छोटा सा लड़का था मैं जिन दिनों अज्ञात

एक साया मिरा मसीहा था

अज्ञात

एक ही मुज़्दा सुब्ह लाती है

अज्ञात

ऐ ज़ब्त देख 'इश्क़ की उन को ख़बर न हो

अज्ञात

ऐ दर्द-ए-इश्क़ तुझ से मुकरने लगा हूँ मैं

अज्ञात

औरत ज़ात

अज्ञात

औलाद

अज्ञात

कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया

कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया अज्ञात

कुत्ते

ये गलियों के आवारा बे-कार कुत्ते अज्ञात

कुत्ते

ये गलियों के आवारा बे-कार कुत्ते अज्ञात

कनार-ए-आब खड़ा ख़ुद से कह रहा है कोई

अज्ञात

कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की

अज्ञात

कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में

अज्ञात

कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में

अज्ञात

कभी कभी याद में उभरते हैं नक़्श-ए-माज़ी मिटे मिटे से

अज्ञात

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता

अज्ञात

कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा

अज्ञात

कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं

अज्ञात

कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी

अज्ञात

क्या क्या न रंग तेरे तलबगार ला चुके

अज्ञात

क्या करें

मिरी तिरी निगाह में अज्ञात

करोगे याद तो हर बात याद आएगी

करोगे याद तो हर बात याद आएगी अज्ञात

कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी

अज्ञात

काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या

अज्ञात

किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी इतनी कसीली बात लिखूँ

अज्ञात

किस से इज़हार-ए-मुद्दआ कीजे

अज्ञात

किस से इज़हार-ए-मुद्दआ कीजे

अज्ञात

कोई उम्मीद बर नहीं आती

अज्ञात

कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है

अज्ञात

कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे

अज्ञात

कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे

अज्ञात

कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे

अज्ञात

कौन कहता है मोहब्बत की ज़बाँ होती है

अज्ञात

कौन याद आया ये महकारें कहाँ से आ गईं

अज्ञात

ख़ुदा असर से बचाए इस आस्ताने को

अज्ञात

ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं

अज्ञात

खुली आँखों में सपना झाँकता है

अज्ञात

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया

अज्ञात

ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं

अज्ञात

गुफ़्तुगू (हिन्द पाक दोस्ती के नाम)

गुफ़्तुगू बंद न हो अज्ञात

ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता

अज्ञात

गर्द-ए-सफ़र में राह ने देखा नहीं मुझे

अज्ञात

गुलों को छू के शमीम-ए-दुआ नहीं आई

अज्ञात

गुलों सी गुफ़्तुगू करें क़यामतों के दरमियाँ

अज्ञात

गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर

अज्ञात

गाहे गाहे बस अब यही हो क्या

अज्ञात

गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया

अज्ञात

घटा है बाग़ है मय है सुबू है जाम है साक़ी

अज्ञात

घर का रस्ता भी मिला था शायद

अज्ञात

घर की दहलीज़ से बाज़ार में मत आ जाना

अज्ञात

चंद रोज़ और मिरी जान

चंद रोज़ और मिरी जान फ़क़त चंद ही रोज़ अज्ञात

चाँदनी छत पे चल रही होगी

अज्ञात

छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ

अज्ञात

छोटे छोटे से मफ़ादात लिए फिरते हैं

अज्ञात

जड़ें

अज्ञात

जुनून-ए-शौक़ अब भी कम नहीं है

अज्ञात

जब इतनी जाँ से मोहब्बत बढ़ा के रक्खी थी

अज्ञात

जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही

अज्ञात

जब रन में सर-बुलंद अली का अलम हुआ

अज्ञात

ज़माना ख़ुदा है

''ज़माना ख़ुदा है उसे तुम बुरा मत कहो'' अज्ञात

ज़रा सी धूप ज़रा सी नमी के आने से

अज्ञात

ज़ुल्फ़ें सीना नाफ़ कमर

अज्ञात

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना अज्ञात

जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं

अज्ञात

ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँ

अज्ञात

जाने किस चाह के किस प्यार के गुन गाते हो

अज्ञात

ज़िंदगी से डरते हो

ज़िंदगी से डरते हो! अज्ञात

ज़िंदगी से डरते हो

ज़िंदगी से डरते हो! अज्ञात

ज़िंदाँ की एक शाम

शाम के पेच-ओ-ख़म सितारों से अज्ञात

जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो

अज्ञात

जी ही जी में वो जल रही होगी

अज्ञात

जो अपनी है वो ख़ाक-ए-दिल-नशीं ही काम आएगी

अज्ञात

जो अब भी न तकलीफ़ फ़रमाइएगा

अज्ञात

जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा

अज्ञात

ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं

अज्ञात

तू अगर सैर को निकले

तू अगर सैर को निकले तो उजाला हो जाए अज्ञात

तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है

अज्ञात

तू जब मेरे घर आया था

अज्ञात

तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं

अज्ञात

तुम्हें ख़याल-ए-ज़ात है शुऊर-ए-ज़ात ही नहीं

अज्ञात

तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं

अज्ञात

तराना-ए-हिन्दी

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा अज्ञात

तेरी ख़ुश्बू का पता करती है

अज्ञात

तेरी सूरत जो दिल-नशीं की है

अज्ञात

तस्वीर-ए-दर्द

नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शुनीदन दास्ताँ मेरी अज्ञात

तारिक़ की दुआ

(उंदुलुस के मैदान-ए-जंग में) अज्ञात

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

अज्ञात

देख तो दिल कि जाँ से उठता है

अज्ञात

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ

अज्ञात

दिन को भी इतना अंधेरा है मिरे कमरे में

अज्ञात

दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं

अज्ञात

दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं

अज्ञात

दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं

अज्ञात

दिल को ग़म-ए-हयात गवारा है इन दिनों

अज्ञात

दिल चुरा कर नज़र चुराई है

अज्ञात

दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं

अज्ञात

दिल मिरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला

अज्ञात

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

अज्ञात

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

अज्ञात

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

अज्ञात

दिल-ए-मन मुसाफ़िर-ए-मन

मिरे दिल, मिरे मुसाफ़िर अज्ञात

दीप था या तारा क्या जाने

अज्ञात

दो हाथ

अज्ञात

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो

अज्ञात

न आते हमें इस में तकरार क्या थी

अज्ञात

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

अज्ञात

न गुमान मौत का है न ख़याल ज़िंदगी का

अज्ञात

न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए

अज्ञात

न तख़्त-ओ-ताज में ने लश्कर-ओ-सिपाह में है

अज्ञात

नदी ने धूप से क्या कह दिया रवानी में

अज्ञात

नन्ही पुजारन

इक नन्ही मुन्नी सी पुजारन अज्ञात

नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम

अज्ञात

नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं

अज्ञात

नूरा

वो नौ-ख़ेज़ नूरा वो इक बिन्त-ए-मरियम अज्ञात

नूरा

वो नौ-ख़ेज़ नूरा वो इक बिन्त-ए-मरियम अज्ञात

निय्यत-ए-शौक़ भर न जाए कहीं

अज्ञात

नींद आँखों से उड़ी फूल से ख़ुश्बू की तरह

अज्ञात

नौ-जवान ख़ातून से

हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था अज्ञात

नौ-जवान से

जलाल-ए-आतिश-ओ-बर्क़-ओ-सहाब पैदा कर अज्ञात

परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए

अज्ञात

पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा

अज्ञात

पाँव से लहू को धो डालो

हम क्या करते किस रह चलते अज्ञात

फ़र्ज़ करो

फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों अज्ञात

फूल थे रंग थे लम्हों की सबाहत हम थे

अज्ञात

फूल मुरझा गए सारे

फूल मुरझा गए हैं सारे अज्ञात

फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर

अज्ञात

फिर शब-ए-ग़म ने मुझे शक्ल दिखाई क्यूँकर

अज्ञात

बे-क़रारी सी बे-क़रारी है

अज्ञात

बग़ैर उस के अब आराम भी नहीं आता

अज्ञात

बचनी

अज्ञात

बंजारा-नामा

टुक हिर्स-ओ-हवा को छोड़ मियाँ मत देस बिदेस फिरे मारा अज्ञात

बंजारा-नामा

टुक हिर्स-ओ-हवा को छोड़ मियाँ मत देस बिदेस फिरे मारा अज्ञात

बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों मोहब्बतों के दिए जला के

अज्ञात

बदन कजला गया तो दिल की ताबानी से निकलूँगा

अज्ञात

बदसूरती

अज्ञात

बदसूरती

अज्ञात

बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता

अज्ञात

बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता

अज्ञात

बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता

अज्ञात

बर्क़-ए-कलीसा

अज्ञात

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

अज्ञात

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी

अज्ञात

बात मेरी कभी सुनी ही नहीं

अज्ञात

बादशाहत का ख़ात्मा

अज्ञात

बाबू गोपीनाथ

अज्ञात

बारिश

अज्ञात

बिंदराबन के कृष्ण-कन्हैया अल्लाह-हू

अज्ञात

बीमार

अज्ञात

बीमार-ए-मोहब्बत की दवा है कि नहीं है

अज्ञात

भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं

अज्ञात

भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें

अज्ञात

मआल-ए-सोज़-ए-ग़म-हा-ए-निहानी देखते जाओ

अज्ञात

मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे

अज्ञात

मुजरिम

यही रस्ता मिरी मंज़िल की तरफ़ जाता है अज्ञात

मुझे वो कुंज-ए-तन्हाई से आख़िर कब निकालेगा

अज्ञात

मुझ से ऊँचा तिरा क़द है, हद है

अज्ञात

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात

मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी

अज्ञात

मुरझा के काली झील में गिरते हुए भी देख

अज्ञात

मुशीर

मैं ने उस से ये कहा अज्ञात

मुसलमाँ के लहू में है सलीक़ा दिल-नवाज़ी का

अज्ञात

मिट्टी का दिया

झुटपुटे के वक़्त घर से एक मिट्टी का दिया अज्ञात

मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता

अज्ञात

मिटा दिया मिरे साक़ी ने आलम-ए-मन-ओ-तू

अज्ञात

मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है

अज्ञात

मोहब्बत का असर जाता कहाँ है

अज्ञात

मोहब्बत में ये क्या मक़ाम आ रहे हैं

अज्ञात

ये ठीक है कि बहुत वहशतें भी ठीक नहीं

अज्ञात

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

अज्ञात

ये हसीं लोग हैं तू इन की मुरव्वत पे न जा

अज्ञात

यक़ीन का अगर कोई भी सिलसिला नहीं रहा

अज्ञात

रक़्स

ऐ मिरी हम-रक़्स मुझ को थाम ले अज्ञात

रुकी रुकी सी शब-ए-मर्ग ख़त्म पर आई

अज्ञात

रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए

अज्ञात

रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी

अज्ञात

रात और रेल

फिर चली है रेल स्टेशन से लहराती हुई अज्ञात

रात और रेल

फिर चली है रेल स्टेशन से लहराती हुई अज्ञात

रात के बा'द नए दिन की सहर आएगी

अज्ञात

रोग ऐसे भी ग़म-ए-यार से लग जाते हैं

अज्ञात

रौशनी मुझ से गुरेज़ाँ है तो शिकवा भी नहीं

अज्ञात

ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें

अज्ञात

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा

अज्ञात

लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता

अज्ञात

लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा

सुनने को भीड़ है सर-ए-महशर लगी हुई अज्ञात

लिहाफ़

अज्ञात

वतन का राग

भारत प्यारा देश हमारा सब देशों से न्यारा है अज्ञात

व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे)

हम देखेंगे अज्ञात

व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे)

हम देखेंगे अज्ञात

वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद

अज्ञात

वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या

अज्ञात

वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या

अज्ञात

वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या

अज्ञात

वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या

अज्ञात

वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे

अज्ञात

वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे

अज्ञात

वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे

अज्ञात

वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे

अज्ञात

वो मजबूरी नहीं थी ये अदाकारी नहीं है

अज्ञात

शरमा गए लजा गए दामन छुड़ा गए

अज्ञात

शौक़ से नाकामी की बदौलत कूचा-ए-दिल ही छूट गया

अज्ञात

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अज्ञात

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अज्ञात

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अज्ञात

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अज्ञात

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

अज्ञात

सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ

अज्ञात

सर ही अब फोड़िए नदामत में

अज्ञात

संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है

अज्ञात

साए

किसी साए का नक़्श गहरा नहीं है अज्ञात

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं

अज्ञात

सितारों से उलझता जा रहा हूँ

अज्ञात

सिलसिले के बाद कोई सिलसिला रौशन करें

अज्ञात

सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई

अज्ञात

है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ

अज्ञात

हज़ार ख़ौफ़ हो लेकिन ज़बाँ हो दिल की रफ़ीक़

अज्ञात

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले

अज्ञात

हम तो मजबूर-ए-वफ़ा हैं

तुझ को कितनों का लहू चाहिए ऐ अर्ज़-ए-वतन अज्ञात

हम ने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर

अज्ञात

हम बाग़-ए-तमन्ना में दिन अपने गुज़ार आए

अज्ञात

हम भी शाइ'र थे कभी जान-ए-सुख़न याद नहीं

अज्ञात

हमेशा देर कर देता हूँ

हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में अज्ञात

हर इक दरीचा किरन किरन है जहाँ से गुज़रे जिधर गए हैं

अज्ञात

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

अज्ञात

हर एक शब यूँही देखेंगी सू-ए-दर आँखें

अज्ञात

हर गाम सँभल सँभल रही थी

अज्ञात

हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए

अज्ञात

हार्ट-अटैक

दर्द इतना था कि उस रात दिल-ए-वहशी ने अज्ञात

हाल खुलता नहीं जबीनों से

अज्ञात

हिन्दुस्तानी बच्चों का क़ौमी गीत

चिश्ती ने जिस ज़मीं में पैग़ाम-ए-हक़ सुनाया अज्ञात

होली

आ धमके ऐश ओ तरब क्या क्या जब हुस्न दिखाया होली ने अज्ञात

ruk gaya aankh se behta hua dariya kaise

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अज्ञात

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