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"Anam" a Nazm By Faraz Ahmad sung By: Sunil Chaudhry अज्ञात
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Aa Kar Ke Meri Kabr Par - Bahadur Shah Zafar अज्ञात
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Aaj phir dil ne kaha aao bhuladen yaaden अज्ञात
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Ab ke uski aankhon mein अज्ञात
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Ab rahiye baith ek jangal mein अज्ञात
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Aisa nahi ke tere baad ahle karam nahi mile अज्ञात
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Amazing Urdu Naat by Ghulam Muhammad Qasir अज्ञात
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An Evening on Asrar ul Haq Majaz Birth Anniversary by Muzzafar Ali's Rumi Foundation(Lucknow Chapter) अज्ञात
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Apne hone ka hum ehsaas jagaane aae अज्ञात
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Apne markaz se agar door nikal jao ge अज्ञात
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Baat Kar अज्ञात
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Bedam Shah Warsi's 'Hamari Jaan Ho...' sung by Azalea Ray अज्ञात
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Bhari mehfil mein tanhaaii ka aalam dhoond leta hoon अज्ञात
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Chalo chodo mohabbat jhoot hai अज्ञात
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Dekh Lo Aaj Hum Ko Jee Bhar ke - Hindi Film Bazaar अज्ञात
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Dil Ko Jahan Bhar Ke Muhabbat Mein Gham Mile अज्ञात
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Diwali Nazm अज्ञात
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dushmanon ne to dushmani ki hai अज्ञात
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Ibtedaa-e-Zindagi अज्ञात
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Ilahi koi hawa ka अज्ञात
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In Solidarity with Gaza - Ahmed Faraz Nazm अज्ञात
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Iraada ho atal to maujzaa aisa bhi hota hai अज्ञात
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Is tapish ka hai mazaa dil hi ko haasil अज्ञात
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Jab meri yaad sataae mujhe khat likhna अज्ञात
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Jab un se mile अज्ञात
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Jism chhooti hai jab aa aa ke pawan baarish mein अज्ञात
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Jo khayaal the na qayaas the अज्ञात
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Kaee saal guzre kaee saal beete अज्ञात
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Kamla Devi singing Fani Badayuni अज्ञात
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Koi kaisa humsafar hai अज्ञात
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Main aisa khoobsoorat rang hoon अज्ञात
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Main jahaan rahoon अज्ञात
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Maine dekha tha un dino mein use अज्ञात
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Mansab to hamein bhi mil sakte the अज्ञात
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Matlabi hain log yahan par, matlabi zamaana अज्ञात
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Mere baad kidhar jaaegi tanhaee अज्ञात
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Meri raaton ki raahat din ke itmenaan अज्ञात
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Mile kisi se nazar to samjho ghazal hui अज्ञात
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More Jobna Ka Ubhar Papi Jobna Ka Dekho Zohrabai Ambalewali अज्ञात
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Mughe apne zabt pe naz tha अज्ञात
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Mujhe ab laut jane de अज्ञात
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Mujhe maut di ke hayaat di अज्ञात
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Na ghubaar mein na gulaab mein mujhe dekhna अज्ञात
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Na samaaton mein tapish ghuleNa samaaton mein tapish ghule अज्ञात
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Phir usi dasht se aa mil le milaale अज्ञात
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Rang mausam ka haraa tha pehle अज्ञात
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Saaye-e-Ahmed-e-Mukhtar Mubarak Bashad - Kalam-e-Bedam Shah Warsi by Ahsan & Adil Hussain Khan अज्ञात
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shauq-e-beintiha na de jana अज्ञात
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Shikast e zarf ko pindaar e rindana nahin kehte अज्ञात
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Shikwa bhi jafa ka kaise karein अज्ञात
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Shouq Se Nakami Ki Badaulat अज्ञात
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Tera beemaar na sambhlaa अज्ञात
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Tere pyar ki tamanna अज्ञात
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Teri aankhen अज्ञात
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Tujhse milne ka nahin koi imkaan jaana अज्ञात
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Tum naghma e mah o anjum ho अज्ञात
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Tumhain Dekh K Yaad Aata Hai Mujhay..... Kahin Pehlay Bhe Tum Sy Mila Hu Mein अज्ञात
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Vocal Title: Kis Ne Zarron Ko Uthaya کس نے ذروں کو اٹھایا Lyrics: Pandit Harichand Akhtar अज्ञात
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Ye to uska hi karishma hai अज्ञात
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Yeh nigah e sharm jhuki jhuki अज्ञात
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Yun hi si ek baat thi अज्ञात
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अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है अज्ञात
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अज़ल के मुसव्विर से अज्ञात
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अज़ल के मुसव्विर से अज्ञात
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अज़ल के मुसव्विर से अज्ञात
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अपने मरकज़ से कट गया हूँ मैं अज्ञात
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आए कुछ अब्र कुछ शराब आए अज्ञात
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आख़िर ऐसा क्यों है पापा अज्ञात
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आँखों का है क़ुसूर अगर वो अयाँ नहीं अज्ञात
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आदमी पहले तो लाज़िम है कि इंसान बने अज्ञात
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आप की ओर इक नज़र देखा अज्ञात
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आप की ओर इक नज़र देखा अज्ञात
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''आप की याद आती रही रात भर'' अज्ञात
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक अज्ञात
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ऐ शरीफ़ इंसानो अज्ञात
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और क्या चाहिए जीने के लिए अज्ञात
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और क्या चाहिए जीने के लिए अज्ञात
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क़दम-क़दम पे तू ऐ राह-रौ क़याम न कर अज्ञात
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कभी कहा न किसी से तिरे फ़साने को अज्ञात
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कभी लगता है ज़र्रे के बराबर है बिसात अपनी अज्ञात
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क्यों कहीं बैठ के दम लेते नहीं एक घड़ी अज्ञात
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करो दाग़-ए-दिल की सदा पासबानी अज्ञात
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किया क्या ऐ 'सदा' तू ने बता आ कर ज़माने में अज्ञात
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किस से इज़हार-ए-मुद्दआ कीजे अज्ञात
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किसी से अहद-ओ-पैमाँ कर न रहियो अज्ञात
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किसी सलीम से जब है कोई ख़ता होती अज्ञात
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गुमाँ का मुमकिन- जो तू है मैं हूँ अज्ञात
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छुपता नहीं नक़ाब में जल्वा शबाब का अज्ञात
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जवाब-ए-शिकवा अज्ञात
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जुस्तुजू अज्ञात
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जो तेज़ दौड़ते थे बहुत जल्द थक गए अज्ञात
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त'आरुफ़ अज्ञात
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तुम को देखा तो ये ख़याल आया अज्ञात
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तमन्ना के तार अज्ञात
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दु'आ अज्ञात
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दुनिया में रह के दुनिया में शामिल नहीं हूँ मैं अज्ञात
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दसहरा अज्ञात
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दिल के कहने पर चल निकला अज्ञात
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दिल के कहने पर चल निकला अज्ञात
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दिल के कहने पर चल निकला अज्ञात
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दिल में अब यूँ तिरे भूले हुए ग़म आते हैं अज्ञात
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ अज्ञात
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है अज्ञात
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धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो अज्ञात
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न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है अज्ञात
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नज़र ने कर दिया ग़ाएब दिखाया दिल ने जो जल्वा अज्ञात
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नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम अज्ञात
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निगाह ख़ुद पे टिकी थी तो और क्या दिखता अज्ञात
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नींद आई ही नहीं हम को न पूछो कब से अज्ञात
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पत्ता पत्ता क्यों है दिल अफ़गार इस गुलज़ार का अज्ञात
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प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है अज्ञात
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फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है अज्ञात
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फिर भी अपना देश है चंगा अज्ञात
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बहुत दिल को कुशादा कर लिया क्या अज्ञात
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बात बस से निकल चली है अज्ञात
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मंज़र-ए-रुख़्सत-ए-दिलदार भुलाया न गया अज्ञात
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मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात
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मरहूम की याद में अज्ञात
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मिरे हमदम मिरे दोस्त! अज्ञात
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मिरे हमदम मिरे दोस्त! अज्ञात
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मिरी तौबा जो टूटी है शरारत सब फ़ज़ा की है अज्ञात
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मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए अज्ञात
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मिली दिल की अपने ख़बर सनम तुझे दिल में जब से बसा लिया अज्ञात
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मोहब्बत करने वाले कम न होंगे अज्ञात
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ये कौन आ गई दिल-रुबा महकी महकी अज्ञात
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ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ अज्ञात
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ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ अज्ञात
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ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ अज्ञात
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ अज्ञात
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ अज्ञात
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लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला अज्ञात
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वजूद पर इंहिसार मैं ने नहीं किया था अज्ञात
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वो नबियों में रहमत लक़ब पाने वाला अज्ञात
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वो भूल गया मुझ से बरसों की शनासाई अज्ञात
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वो मज़ा रखते हैं कुछ ताज़ा फ़साने अपने अज्ञात
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सब से प्यारा है प्यार का रिश्ता अज्ञात
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सरमाया-दारी अज्ञात
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सादगी तो हमारी ज़रा देखिए ए'तिबार आप के वा'दे पर कर लिया अज्ञात
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है बिखरने को ये महफ़िल-ए-रंग-ओ-बू तुम कहाँ जाओगे हम कहाँ जाएँगे अज्ञात
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हक़ की है गर तलाश तो ये मान कर चलो अज्ञात
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है अज्ञात
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हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए अज्ञात
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हल्क़े में रसूलों के वो माह-ए-मदनी है अज्ञात
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हँसते-हँसते न सही रो के ही कट जाने दो अज्ञात
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अज्ञात
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अज्ञात
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अज्ञात
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1919 की एक बात अज्ञात
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Based on Sadat Hassan Manto's short story "Thanda Gosht" अज्ञात
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Buu अज्ञात
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jab teri samundar aankhon mein अज्ञात
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KHatm hui barish-e-sang अज्ञात
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Khol do अज्ञात
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Khol Do (Photo Story) अज्ञात
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KHuda wo waqt na lae अज्ञात
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kya karen अज्ञात
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lauh-o-qalam अज्ञात
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main tere sapne dekhun अज्ञात
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mere dard ko jo zaban mile अज्ञात
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mere hamdam mere dost अज्ञात
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mere hi lahu par guzar auqat karo ho अज्ञात
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Piran अज्ञात
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shishon ka masiha koi nahin अज्ञात
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tin aawazen - Part 2 अज्ञात
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tum apni karni kar guzro अज्ञात
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Zihaal-e-Miskeen - Sannata Soundtrack अज्ञात
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अक़्ल गो आस्ताँ से दूर नहीं अज्ञात
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अक़्ल गो आस्ताँ से दूर नहीं अज्ञात
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अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा अज्ञात
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अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा अज्ञात
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अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए अज्ञात
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अचानक दिलरुबा मौसम का दिल-आज़ार हो जाना अज्ञात
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अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता अज्ञात
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अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता अज्ञात
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अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता अज्ञात
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अंधा कबाड़ी अज्ञात
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अनार कली अज्ञात
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अपने को तलाश कर रहा हूँ अज्ञात
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अपने सब यार काम कर रहे हैं अज्ञात
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अपने हाथों की लकीरों में सजा ले मुझ को अज्ञात
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अपने हाथों की लकीरों में सजा ले मुझ को अज्ञात
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अपने हाथों की लकीरों में सजा ले मुझ को अज्ञात
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अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाए अज्ञात
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अपनी तन्हाई मिरे नाम पे आबाद करे अज्ञात
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अपनी धुन में रहता हूँ अज्ञात
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अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ अज्ञात
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अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो अज्ञात
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें अज्ञात
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अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे अज्ञात
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अब तो ये भी नहीं रहा एहसास अज्ञात
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अब्जी डूडू अज्ञात
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अभी इक शोर सा उठा है कहीं अज्ञात
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अभी तो मैं जवान हूँ अज्ञात
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अभी हमारी मोहब्बत किसी को क्या मालूम अज्ञात
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अल्लाह दत्ता अज्ञात
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अश्क-ए-ग़म आँख से बाहर भी नहीं आने का अज्ञात
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अश्क-ए-रवाँ की नहर है और हम हैं दोस्तो अज्ञात
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असर उस को ज़रा नहीं होता अज्ञात
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असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद अज्ञात
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असली जिन अज्ञात
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आ के पत्थर तो मिरे सहन में दो चार गिरे अज्ञात
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आ जाएँ हम नज़र जो कोई दम बहुत है याँ अज्ञात
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आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने अज्ञात
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आए कुछ अब्र कुछ शराब आए अज्ञात
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आए कुछ अब्र कुछ शराब आए अज्ञात
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आँखें अज्ञात
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आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा अज्ञात
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आख़िरी सल्यूट अज्ञात
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आँखों पर चर्बी अज्ञात
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आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ अज्ञात
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आँखों में बस के दिल में समा कर चले गए अज्ञात
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आँखों से हया टपके है अंदाज़ तो देखो अज्ञात
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आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता अज्ञात
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आज की शब तो किसी तौर गुज़र जाएगी अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज जाने की ज़िद न करो अज्ञात
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आज तो बे-सबब उदास है जी अज्ञात
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आप की याद आती रही रात भर अज्ञात
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आप की याद आती रही रात भर अज्ञात
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आप की याद आती रही रात भर अज्ञात
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आप जिन के क़रीब होते हैं अज्ञात
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आप जिन के क़रीब होते हैं अज्ञात
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आप जिन के क़रीब होते हैं अज्ञात
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आप जिन के क़रीब होते हैं अज्ञात
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आम अज्ञात
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आरज़ू है वफ़ा करे कोई अज्ञात
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आर्टिस्ट लोग अज्ञात
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आलम ही और था जो शनासाइयों में था अज्ञात
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आवारा अज्ञात
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आवारा अज्ञात
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आवारा अज्ञात
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक अज्ञात
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक अज्ञात
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आह जो दिल से निकाली जाएगी अज्ञात
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आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो अज्ञात
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आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो अज्ञात
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इक दानिश-ए-नूरानी इक दानिश-ए-बुरहानी अज्ञात
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इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए अज्ञात
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इक शहंशाह ने बनवा के.... अज्ञात
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इक शहंशाह ने बनवा के.... अज्ञात
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इक शहंशाह ने बनवा के.... अज्ञात
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इक शहंशाह ने बनवा के.... अज्ञात
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इक शहंशाह ने बनवा के.... अज्ञात
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इक शहंशाह ने बनवा के.... अज्ञात
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इक शहंशाह ने बनवा के.... अज्ञात
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इक शहंशाह ने बनवा के.... अज्ञात
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इतना मालूम है! अज्ञात
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इंतिसाब अज्ञात
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इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई अज्ञात
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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही अज्ञात
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इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ अज्ञात
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इंसान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी अज्ञात
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इसी में ख़ुश हूँ मिरा दुख कोई तो सहता है अज्ञात
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उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या अज्ञात
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उर्दू अज्ञात
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उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है अज्ञात
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एक ख़त अज्ञात
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एक रह-गुज़र पर अज्ञात
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एक लड़का अज्ञात
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एक साया मिरा मसीहा था अज्ञात
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एक ही मुज़्दा सुब्ह लाती है अज्ञात
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ऐ ज़ब्त देख 'इश्क़ की उन को ख़बर न हो अज्ञात
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ऐ दर्द-ए-इश्क़ तुझ से मुकरने लगा हूँ मैं अज्ञात
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औरत ज़ात अज्ञात
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औलाद अज्ञात
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कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया अज्ञात
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कुत्ते अज्ञात
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कुत्ते अज्ञात
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कनार-ए-आब खड़ा ख़ुद से कह रहा है कोई अज्ञात
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कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की अज्ञात
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कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में अज्ञात
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कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में अज्ञात
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कभी कभी याद में उभरते हैं नक़्श-ए-माज़ी मिटे मिटे से अज्ञात
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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता अज्ञात
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कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा अज्ञात
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कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं अज्ञात
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कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी अज्ञात
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क्या क्या न रंग तेरे तलबगार ला चुके अज्ञात
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क्या करें अज्ञात
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करोगे याद तो हर बात याद आएगी अज्ञात
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कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी अज्ञात
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काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या अज्ञात
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किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी इतनी कसीली बात लिखूँ अज्ञात
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किस से इज़हार-ए-मुद्दआ कीजे अज्ञात
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किस से इज़हार-ए-मुद्दआ कीजे अज्ञात
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कोई उम्मीद बर नहीं आती अज्ञात
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कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है अज्ञात
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कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे अज्ञात
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कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे अज्ञात
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कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे अज्ञात
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कौन कहता है मोहब्बत की ज़बाँ होती है अज्ञात
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कौन याद आया ये महकारें कहाँ से आ गईं अज्ञात
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ख़ुदा असर से बचाए इस आस्ताने को अज्ञात
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ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं अज्ञात
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खुली आँखों में सपना झाँकता है अज्ञात
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ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया अज्ञात
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ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं अज्ञात
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गुफ़्तुगू (हिन्द पाक दोस्ती के नाम) अज्ञात
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ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता अज्ञात
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गर्द-ए-सफ़र में राह ने देखा नहीं मुझे अज्ञात
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गुलों को छू के शमीम-ए-दुआ नहीं आई अज्ञात
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गुलों सी गुफ़्तुगू करें क़यामतों के दरमियाँ अज्ञात
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गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर अज्ञात
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गाहे गाहे बस अब यही हो क्या अज्ञात
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गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया अज्ञात
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घटा है बाग़ है मय है सुबू है जाम है साक़ी अज्ञात
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घर का रस्ता भी मिला था शायद अज्ञात
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घर की दहलीज़ से बाज़ार में मत आ जाना अज्ञात
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चंद रोज़ और मिरी जान अज्ञात
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चाँदनी छत पे चल रही होगी अज्ञात
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छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ अज्ञात
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छोटे छोटे से मफ़ादात लिए फिरते हैं अज्ञात
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जड़ें अज्ञात
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जुनून-ए-शौक़ अब भी कम नहीं है अज्ञात
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जब इतनी जाँ से मोहब्बत बढ़ा के रक्खी थी अज्ञात
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जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही अज्ञात
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जब रन में सर-बुलंद अली का अलम हुआ अज्ञात
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ज़माना ख़ुदा है अज्ञात
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ज़रा सी धूप ज़रा सी नमी के आने से अज्ञात
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ज़ुल्फ़ें सीना नाफ़ कमर अज्ञात
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ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना अज्ञात
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जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं अज्ञात
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ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँ अज्ञात
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जाने किस चाह के किस प्यार के गुन गाते हो अज्ञात
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ज़िंदगी से डरते हो अज्ञात
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ज़िंदगी से डरते हो अज्ञात
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ज़िंदाँ की एक शाम अज्ञात
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जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो अज्ञात
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जी ही जी में वो जल रही होगी अज्ञात
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जो अपनी है वो ख़ाक-ए-दिल-नशीं ही काम आएगी अज्ञात
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जो अब भी न तकलीफ़ फ़रमाइएगा अज्ञात
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जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा अज्ञात
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ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं अज्ञात
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तू अगर सैर को निकले अज्ञात
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तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है अज्ञात
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तू जब मेरे घर आया था अज्ञात
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तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं अज्ञात
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तुम्हें ख़याल-ए-ज़ात है शुऊर-ए-ज़ात ही नहीं अज्ञात
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तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं अज्ञात
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तराना-ए-हिन्दी अज्ञात
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तेरी ख़ुश्बू का पता करती है अज्ञात
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तेरी सूरत जो दिल-नशीं की है अज्ञात
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तस्वीर-ए-दर्द अज्ञात
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तारिक़ की दुआ अज्ञात
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तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ अज्ञात
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देख तो दिल कि जाँ से उठता है अज्ञात
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दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ अज्ञात
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दिन को भी इतना अंधेरा है मिरे कमरे में अज्ञात
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दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं अज्ञात
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दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं अज्ञात
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दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं अज्ञात
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दिल को ग़म-ए-हयात गवारा है इन दिनों अज्ञात
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दिल चुरा कर नज़र चुराई है अज्ञात
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दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं अज्ञात
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दिल मिरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला अज्ञात
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ अज्ञात
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ अज्ञात
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है अज्ञात
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दिल-ए-मन मुसाफ़िर-ए-मन अज्ञात
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दीप था या तारा क्या जाने अज्ञात
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दो हाथ अज्ञात
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धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो अज्ञात
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न आते हमें इस में तकरार क्या थी अज्ञात
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न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ अज्ञात
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न गुमान मौत का है न ख़याल ज़िंदगी का अज्ञात
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न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए अज्ञात
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न तख़्त-ओ-ताज में ने लश्कर-ओ-सिपाह में है अज्ञात
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नदी ने धूप से क्या कह दिया रवानी में अज्ञात
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नन्ही पुजारन अज्ञात
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नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम अज्ञात
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नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं अज्ञात
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नूरा अज्ञात
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नूरा अज्ञात
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निय्यत-ए-शौक़ भर न जाए कहीं अज्ञात
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नींद आँखों से उड़ी फूल से ख़ुश्बू की तरह अज्ञात
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नौ-जवान ख़ातून से अज्ञात
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नौ-जवान से अज्ञात
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परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए अज्ञात
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पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा अज्ञात
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पाँव से लहू को धो डालो अज्ञात
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फ़र्ज़ करो अज्ञात
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फूल थे रंग थे लम्हों की सबाहत हम थे अज्ञात
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फूल मुरझा गए सारे अज्ञात
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फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर अज्ञात
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फिर शब-ए-ग़म ने मुझे शक्ल दिखाई क्यूँकर अज्ञात
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बे-क़रारी सी बे-क़रारी है अज्ञात
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बग़ैर उस के अब आराम भी नहीं आता अज्ञात
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बचनी अज्ञात
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बंजारा-नामा अज्ञात
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बंजारा-नामा अज्ञात
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बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों मोहब्बतों के दिए जला के अज्ञात
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बदन कजला गया तो दिल की ताबानी से निकलूँगा अज्ञात
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बदसूरती अज्ञात
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बदसूरती अज्ञात
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बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता अज्ञात
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बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता अज्ञात
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बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता अज्ञात
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बर्क़-ए-कलीसा अज्ञात
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बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना अज्ञात
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बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी अज्ञात
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बात मेरी कभी सुनी ही नहीं अज्ञात
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बादशाहत का ख़ात्मा अज्ञात
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बाबू गोपीनाथ अज्ञात
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बारिश अज्ञात
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बिंदराबन के कृष्ण-कन्हैया अल्लाह-हू अज्ञात
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बीमार अज्ञात
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बीमार-ए-मोहब्बत की दवा है कि नहीं है अज्ञात
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भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं अज्ञात
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भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें अज्ञात
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मआल-ए-सोज़-ए-ग़म-हा-ए-निहानी देखते जाओ अज्ञात
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मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे अज्ञात
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मुजरिम अज्ञात
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मुझे वो कुंज-ए-तन्हाई से आख़िर कब निकालेगा अज्ञात
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मुझ से ऊँचा तिरा क़द है, हद है अज्ञात
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मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात
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मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात
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मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात
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मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात
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मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात
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मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात
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मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात
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मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात
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मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग अज्ञात
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मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी अज्ञात
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मुरझा के काली झील में गिरते हुए भी देख अज्ञात
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मुशीर अज्ञात
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मुसलमाँ के लहू में है सलीक़ा दिल-नवाज़ी का अज्ञात
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मिट्टी का दिया अज्ञात
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मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता अज्ञात
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मिटा दिया मिरे साक़ी ने आलम-ए-मन-ओ-तू अज्ञात
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मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है अज्ञात
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मोहब्बत का असर जाता कहाँ है अज्ञात
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मोहब्बत में ये क्या मक़ाम आ रहे हैं अज्ञात
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ये ठीक है कि बहुत वहशतें भी ठीक नहीं अज्ञात
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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता अज्ञात
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ये हसीं लोग हैं तू इन की मुरव्वत पे न जा अज्ञात
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यक़ीन का अगर कोई भी सिलसिला नहीं रहा अज्ञात
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रक़्स अज्ञात
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रुकी रुकी सी शब-ए-मर्ग ख़त्म पर आई अज्ञात
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रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए अज्ञात
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रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी अज्ञात
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रात और रेल अज्ञात
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रात और रेल अज्ञात
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रात के बा'द नए दिन की सहर आएगी अज्ञात
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रोग ऐसे भी ग़म-ए-यार से लग जाते हैं अज्ञात
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रौशनी मुझ से गुरेज़ाँ है तो शिकवा भी नहीं अज्ञात
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ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें अज्ञात
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ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा अज्ञात
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लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता अज्ञात
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लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा अज्ञात
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लिहाफ़ अज्ञात
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वतन का राग अज्ञात
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व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे) अज्ञात
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व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे) अज्ञात
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वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद अज्ञात
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वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या अज्ञात
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वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या अज्ञात
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वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या अज्ञात
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वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या अज्ञात
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वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे अज्ञात
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वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे अज्ञात
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वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे अज्ञात
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वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे अज्ञात
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वो मजबूरी नहीं थी ये अदाकारी नहीं है अज्ञात
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शरमा गए लजा गए दामन छुड़ा गए अज्ञात
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शौक़ से नाकामी की बदौलत कूचा-ए-दिल ही छूट गया अज्ञात
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं अज्ञात
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं अज्ञात
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं अज्ञात
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं अज्ञात
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सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं अज्ञात
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सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ अज्ञात
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सर ही अब फोड़िए नदामत में अज्ञात
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संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है अज्ञात
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साए अज्ञात
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सितारों से आगे जहाँ और भी हैं अज्ञात
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सितारों से उलझता जा रहा हूँ अज्ञात
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सिलसिले के बाद कोई सिलसिला रौशन करें अज्ञात
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सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई अज्ञात
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है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ अज्ञात
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हज़ार ख़ौफ़ हो लेकिन ज़बाँ हो दिल की रफ़ीक़ अज्ञात
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हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले अज्ञात
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हम तो मजबूर-ए-वफ़ा हैं अज्ञात
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हम ने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर अज्ञात
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हम बाग़-ए-तमन्ना में दिन अपने गुज़ार आए अज्ञात
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हम भी शाइ'र थे कभी जान-ए-सुख़न याद नहीं अज्ञात
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हमेशा देर कर देता हूँ अज्ञात
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हर इक दरीचा किरन किरन है जहाँ से गुज़रे जिधर गए हैं अज्ञात
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है अज्ञात
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हर एक शब यूँही देखेंगी सू-ए-दर आँखें अज्ञात
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हर गाम सँभल सँभल रही थी अज्ञात
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हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए अज्ञात
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