उरूज क़ादरी
ग़ज़ल 18
नज़्म 3
अशआर 1
शहीदों का तिरे शोहरा ज़मीं से आसमाँ तक है
फ़लक से बल्कि आगे बढ़ के तेरे आस्ताँ तक है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere