उरूज ज़ैदी बदायूनी के शेर
इस दिलबरी की शान के क़ुर्बान जाइए
अब दिल-दही को आए हैं जब दिल नहीं रहा
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क़दम क़दम पे मैं सँभला हूँ ठोकरें खा कर
ये ठोकरों ने बताया ग़लत-रवी क्या है
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गया क़रीब जो परवाना रह गया जल कर
जमाल ख़ास हदों तक जमाल होता है
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