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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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उस्मान मीनाई

ग़ज़ल 4

 

अशआर 14

हो 'मीर' का ज़माना कि मौजूदा वक़्त हो

दिल्ली से लखनऊ की हमेशा ठनी रही

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उस्ताद-ए-मोहतरम ने की इस्लाह शे'र की

लेकिन हलाक शे'र का मफ़्हूम कर दिया

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दिया बुझाने की फ़ितरत बदल भी सकती है

कोई चराग़ हवा पर दबाओ तो डाले

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निशाँ क्यों ढूँढते हो उँगलियों के

क़ज़ा आई थी दस्ताने पहन कर

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ग़ज़लों के शे'र लिखने से पहले हज़ार बार

हम देखते हैं आप की तस्वीर की तरफ़

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