वारिस किरमानी के शेर
हम नींद की चादर में लिपटे हुए चलते हैं
इस भेस में अब हम से मिलना हो तो आ जाना
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उस से यही कहता हूँ वाजिब एहतिराम-ए-इश्क़ है
अंदर से ये ख़्वाहिश है वो जैसा कहे वैसा करूँ
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