स्वर्गीय श्री वेद प्रकाश मलिक का जन्म 06-अगस्त-1947 को हुआ था। वे होशियारपुर मे जन्मे और सोनीपत मे उनका बचपन गुज़रा था और उन्होने अपनी शिक्षा सैनिक स्कूल से प्राप्त की थी। उनके पिता सोनीपत मे पुलिस सेवा मे कार्यरत थे और माता जी आर्य समाजी थी। और बाद मे वे अपने परिवार के साथ कानपुर मे रहे थे।
उनका देहान्त 08-जनवरी-2004 को हुआ था। आज ठीक 16 साल बाद उनकी याद मे उनकी पुत्री "कुशा मलिक" द्वारा उनकी पुण्यतिथि पर उनके द्वारा रचित "गुले सरशार" (जो कि उनके द्वारा लिखित ग़ज़लो का एक संग्रह है) का प्रकाशन किया गया है।
श्री मलिक ने सुनयना कल्चरल एजुकेशनल वेल्फेयर सोसाइटी की स्थापना करके जहाँ अपने सामाजिक दायित्व को बख़ूबी निभाया, वहीं उनकी क़लम ने उन्हे एक ऐसा सरशार शायर बनाया जिसने ज़माने की सच्चाई को अपनी शाइरी मे बयान करने का पूरा प्रयास किया है ।
उनकी ज़िंदादिली के चर्चे चारों तरफ़ ही हुआ करते थे। उनके लेखन मे भी ये संदेश मिलता है। उनको हमेशा से ही ये लगता था के और कुछ ज़िन्दा रहे न रहे पर लोगो में इंसानियत ज़रूर ज़िन्दा रहनी चाहिए। इस किताब मे कई शेर हैं जिनको पढ़कर आप आनन्दित होंगे।
"कुछ मिले या ना मिले मिलते मिलाते रहिये
शौक़ अच्छा है इसे ख़ूब बढ़ाते रहिये"
कविता के इन अर्थों को ध्यान में रख कर देखें तो स्वर्गीय श्री वेद प्रकाश मलिक जी एक उम्दा कवी के रूप में उभरते हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन संस्कृति, शिक्षा, और लोक-कल्याण में लगा दिया. वैसे जहाँ तक कविकर्म के पारंपरिक रूप – यानी ‘मनोभावनाओं को शब्दों में पिरो कर एक लयात्मक माला गूंथने का काम’ है – तो उस कसौटी पर भी मालिक साहब एक बेहतरीन कवी के रूप में उभरते हैं.
श्री मलिक के लेखन में आज के ज़माने का सच्चाई ऐसे बयान होती है कि आप जीवन की विडंबनाओं पर रोने की बजाये ज़रा सा मुस्कुरा ही देते हैं।