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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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नई नस्ल के नुमाइंदा शाइरों और फ़िक्शन निगारों में शामिल

नई नस्ल के नुमाइंदा शाइरों और फ़िक्शन निगारों में शामिल

वफ़ा नक़वी

ग़ज़ल 36

अशआर 18

ज़मीं उठेगी नहीं आसमाँ झुकेगा नहीं

अना-परस्त हैं दोनों के ख़ानदान बहुत

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अहल-ए-जुनूँ पसंद थे उस को इस लिए

ठुकरा दिया गया मुझे मज्ज़ूब देख कर

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छुपा रहता है दस्त-ए-आरज़ू ख़ुद्दार लोगों का

बड़ी मुश्किल से अपनी ज़ात का इज़हार करते हैं

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बस इक निशान सा बाक़ी था कच्चे आँगन में

परिंदा लौट के आया तो मर चुका था दरख़्त

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कोई कैसे पा सकेगा साएबानी में सुकून

धूप जब बैठी हुई हो साया-ए-दीवार में

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कहानी 2

 

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